ना जाने क्या होगा अंजाम
फिर से उभर रही इन हसरतों का
एक अजब सी कसमकस की
जद में हूँ मैं इन दिनों
कैसे रंग दिखाती है
ये रंगीली
कभी हम होश में न थे
और अभी वो वक़्त न रहा
जब हवाएं चली तो
नादाँ बन बैठे
उभर के सामना हुआ तो
मंज़र ही कुछ और था
इक चहरे पे ये नज़रें
टिकी न कभी
आज ठहरी भी कहीं तो
वो चेहरा, चेहरा ना रहा
bahut hi sundar rachana ....badhai
जवाब देंहटाएं....बहुत ही बेहतरीन पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया...
हटाएंकुमार भाई
जवाब देंहटाएंमेरे यहाँ आने के लिए शुक्रिया, मैं भी आपका फोलोवर बन गया हूँ सो अब आना जाना होता रहेगा!
आपकी रचना बहुत ही गहरी है और काफी कुछ बयान करती है!
आप नए लगते हैं ब्लॉग जगत में, स्वागत है आपका!
सुरेन्द्र जी, शुक्रिया ...
हटाएंबहुत सुंदर और भावमयी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं(वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें तो कमेन्ट देने में सुविधा रहेगी)
शुक्रिया शर्मा जी ... आपके सुझाओं का आगे भी इंतज़ार रहेगा...
हटाएंबहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।
जवाब देंहटाएंपहली बार आपको पढ़ा बहुत अच्छा लगा
संजय भास्कर
sanjaybhaskar.blogspot.com