कुर्सी-कुर्सी जाप रत्या हा
अब चिड़िया चोंच मारती रेगी
अर कागा करग्या कलेवा.
कुर्सी री माया कुर्सी जाने
कितो पेट फुलावे है
कितो की भगत पे खावे
कितो पेट पाचवे है.
हाजरी करतां बरस बीत्ग्या
न जुल्म मिट्या न रोग कट्या
बाताँ सु बाताँ जा भिड़ी तो
मिलग्या करमां रा फल अर मेवा.
अब रास हकीक़त आरी कोनी
सच्चाई जनता सुं छानी कोनी
आ गैल कियां छोड़ेगो फितरत रो सायो
जड़ गन्दी नाल्यां सुं कीचड़ जनता हटारी कोणी
कियां बढैगो तेज धुनें रो
जब राम-राम जपनियों कोई पुजारी कोणी.
दवा बताकर राख खिला दी
दमड़ी खातर साख मिटा दी
के करल्यां इ भर्ष्ट राज को
भूखी सोवे है अब जनता आधी .
कुर्सी रो उंन शोक भोत हो
नादाँ भिखारी बन बैठी
पिंजरों शेर रो देख्यो कद हो
जो मात शतरंज म ना खाती.
आब जैक भिड़ी हिन् चैक फड हिन्
करता-करता कुछ होरयो कोणी
ई जनता रो होसी काइन
जड़ चील-कबूतर ई पडरिया स बाजां पर भारी.
जय भारत.
चित्र को आधार रख कर बहुत खूब काल्पनिक शब्द चित्र खींचा है आपने, बधाई|
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