सोमवार, 7 मई 2012

किस-किस पे ऊँगली उठाऊं



किसी की बुझदिली ने इस कदर फंसा दिया है मुझको 
कि इक रूमाल ने बनके  कफन, जला दिया है मुझको

कहाँ से बिगड़ी होगी तस्वीर कोई, जो आज
कोई रंग उठाने से उँगलियों ने मना किया है मुझको

क्या बताऊँ, किस-किस पे ऊँगली उठाऊं 
इधर तो हर लहर ने खुद ही से जुदा किया है मुझको

'सागर', क्या कोई और दर्द न था तेरी झोली में
जो इस तरह हकीक़त से मिला दिया है मुझको

                                                             ---------कुमार (सागर)
 

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इस  रचना के बारे में आपके विचारों और सुझावों का इंतज़ार रहेगा ...धन्यवाद!!
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10 प्रतिक्रियाएँ:

  1. कल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  2. वाह...........
    बहुत खूब.................

    अनु

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब! सुन्दर प्रस्तुति....

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...

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  5. बहुत ही प्रभावी रचना ... .आभार

    जवाब देंहटाएं

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