कि इक रूमाल ने बनके कफन, जला दिया है मुझको
कहाँ से बिगड़ी होगी तस्वीर कोई, जो आज
कोई रंग उठाने से उँगलियों ने मना किया है मुझको
क्या बताऊँ, किस-किस पे ऊँगली उठाऊं
इधर तो हर लहर ने खुद ही से जुदा किया है मुझको
ऐ 'सागर', क्या कोई और दर्द न था तेरी झोली में
ऐ 'सागर', क्या कोई और दर्द न था तेरी झोली में
जो इस तरह हकीक़त से मिला दिया है मुझको
---------कुमार (सागर)
---------कुमार (सागर)
--------------------------------------------------------------------------------------
इस रचना के बारे में आपके विचारों और सुझावों का इंतज़ार रहेगा ...धन्यवाद!!
bahut hee sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंकल 09/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
sashakt bhaav bhoomi..! bahut achchi lagi ye rachna
जवाब देंहटाएंवाह...........
जवाब देंहटाएंबहुत खूब.................
अनु
बहुत खूब .... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब|||
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
बहुत खूब! सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंbeautiful lines.
जवाब देंहटाएंअच्छा चित्रण किया है आप ने...सुन्दर प्रस्तुति... बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावी रचना ... .आभार
जवाब देंहटाएं